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वो चुप रहने को कहते हैं | इलाही ख़ैर वो हर दम नई बेदाद करते हैं। हमें तुहमत लगाते हैं जो हम फ़र्याद करते हैं। कभी आज़ार देते हैं कभी बेदाद ...